सूरज की पहली किरन के उतरते ही,
मैं अपनी आंखों से चंद तन्हाईयों के पर्दे उठाता हूँ ;
ख्यालों के फूलों की ज़मीन कुछ गीली सी है,
शायद कोई नया ग़म उन्हें छूकर गुजरा है अभी अभी,
अपने आंसुओं की शबनम, मैं फूलों पे जमी पता हूँ
उसी में मेरी परछाई, मेरा "अक्स" नज़र आता है ;
रोज़ आईने में अपने "अक्स" की तलाश करता हूँ,
कुछ अपने से , मगर कुछ अनजान से साये,
मेरे "अक्स" में उतरते से नज़र आते हैं,
जो शायद कहीं मेरी यादों में गुम थे,
मैं उनसे आशना हूँ, उन्हें महसूस करता हूँ,
बेखयाली में उन्हें छूने के लिए हाथ बढाता हूँ...
और धीरे से मुस्कुराता हूँ क्योंकि वो मेरे ही कई "अक्स" हैं,
जो ग़मों की शबनम से फूलों को भीगते देखते हैं,
उम्मीदों की सबा से बहते हैं, और पत्तों की आवाज़ में हसते हैं...
यही मेरी ख़ुद को ढूँढने की,
एक,
उम्मीदों से भरी कोशिश है शायद...
आनंद ताम्बे "अक्स"
शबनम = ओस की बूँदें
आशना = परिचित
सबा = हवा
मैं अपनी आंखों से चंद तन्हाईयों के पर्दे उठाता हूँ ;
ख्यालों के फूलों की ज़मीन कुछ गीली सी है,
शायद कोई नया ग़म उन्हें छूकर गुजरा है अभी अभी,
अपने आंसुओं की शबनम, मैं फूलों पे जमी पता हूँ
उसी में मेरी परछाई, मेरा "अक्स" नज़र आता है ;
रोज़ आईने में अपने "अक्स" की तलाश करता हूँ,
कुछ अपने से , मगर कुछ अनजान से साये,
मेरे "अक्स" में उतरते से नज़र आते हैं,
जो शायद कहीं मेरी यादों में गुम थे,
मैं उनसे आशना हूँ, उन्हें महसूस करता हूँ,
बेखयाली में उन्हें छूने के लिए हाथ बढाता हूँ...
और धीरे से मुस्कुराता हूँ क्योंकि वो मेरे ही कई "अक्स" हैं,
जो ग़मों की शबनम से फूलों को भीगते देखते हैं,
उम्मीदों की सबा से बहते हैं, और पत्तों की आवाज़ में हसते हैं...
यही मेरी ख़ुद को ढूँढने की,
एक,
उम्मीदों से भरी कोशिश है शायद...
आनंद ताम्बे "अक्स"
शबनम = ओस की बूँदें
आशना = परिचित
सबा = हवा
No comments:
Post a Comment