ख़्वाब तेरे रात भर,यूँ मेरी आँखों में पलते हैं
होने पर सहर,बन के मेरी ग़ज़ल निकलते हैं
मिलती हैं आँखें,जलता है दिल,झुकती हैं निगाहें
जब बिछड़े हुये ज़माने के, कभी यूँ भी मिलते हैं
शबनम को आँखों में संजोके ढूँढते है तेरे "अक्स" को हम
हाँ, कभी यूँ हीं, इंतज़ार में तेरे,सारे रात दिन निकलते हैं
शाम खुशनुमा सी थी,उनकी आँखों में डूब जाने की चाहत थी
हाय!नज़रें झुका के, ज़रा मुस्कुराके कहना उनका "चलते हैं"
आनंद ताम्बे "अक्स"
होने पर सहर,बन के मेरी ग़ज़ल निकलते हैं
मिलती हैं आँखें,जलता है दिल,झुकती हैं निगाहें
जब बिछड़े हुये ज़माने के, कभी यूँ भी मिलते हैं
शबनम को आँखों में संजोके ढूँढते है तेरे "अक्स" को हम
हाँ, कभी यूँ हीं, इंतज़ार में तेरे,सारे रात दिन निकलते हैं
शाम खुशनुमा सी थी,उनकी आँखों में डूब जाने की चाहत थी
हाय!नज़रें झुका के, ज़रा मुस्कुराके कहना उनका "चलते हैं"
आनंद ताम्बे "अक्स"
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