Sunday, November 13, 2011

काफ़िले चलते रहे

फूलों की खुशबू से जुड़े नहीं कभी, काँटों पे चलते रहे
एक मंजिल पर ये रुके नहीं कभी, काफ़िले चलते रहे

क्या है मज़ा जीने का,जो रुक गये पड़ावों में
यूँ बना कर और नई-नई मंजिलें, चलते रहे

कोई हमसफ़र न मिला अकेले चलते रहे
तन्हाई की तलाश में यूँ , मेले चलते रहे

आई थी याद तेरी, बहुत दिनों के बाद, ए महबूब मेरे
फिर से कई दिनों तक, यादो के सिलसिले चलते रहे

आनंद ताम्बे "अक्स"

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