Sunday, October 9, 2011

ग़ज़ल-ए-शब


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आफताब = सूरज
सियाह = काली
माहताब = पूर्णिमा की चाँद
शवाब = जवानी
नायाब = उत्कृष्ट (magnum-opus)
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अधखुली पलकें पलकों पर सुनहरे ख़्वाब लिये
शब आज फिर सो गई,आफताब की आस लिये

सियाह रेत की चादर ओढ़कर उदास है ज़मीं भी
देख रही वो राह एकटक,माहताब की आस लिये

है चाँद बहुत दूर, फिर भी, मोहब्बत है जवान यूँ
चकोर देख रहा है क्यूँ, एक ख़्वाब की आस लिये

खिले गुलाब के छलकते हैं अश्क अंजाम सोच कर
कली मुस्कुरा रही है यूँ,अपने शवाब की आस लिये

नन्हे नन्हे हाथ, वो उनींदी आँखें,होठों पर कई उलझे हुए सवाल
लौटे जो घर, आधी रात,जान मेरी सो गई,जवाब की आस लिये

सुना तो रहा हूँ महफ़िल में, अपनी ये नयी ग़ज़ल-ए-शब
फ़िज़ा यूँ रही तो फिर लिखूंगा कुछ नायाब की आस लिये

आनंद ताम्बे "अक्स"







अब ये विसाल आया

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विसाल = मिलन
तसव्वुर = कल्पना
बारहा = बार बार
हिज्र = विरह/जुदाई
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यूँ, बाद अरसे के जो तुझे देखा, तो मुझे ये ख़याल आया
आदत सी हो गई थी तेरी कमी की,अब ये विसाल आया

आये हैं मेरी कब्र पर,  अश्कों के दो फ़ूल चढाने
हाय!किस वक़्त उन्हें ये,अब मेरा ख़याल आया

तसव्वुर में तेरे, कई बार तुझे छूने की कोशिश की
बारहा अपना ही हाथ छुआ,जब तेरा ख़याल आया

एक कोरे कागज़ पे अश्कों के निशाँ,चंद पीले पत्ते
हाँ, कुछ इसी तरह, हिज्र का उनके,  ये हाल आया

आनंद ताम्बे "अक्स"


चाँद आयेगा सितारों की बारात लिये


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जज्बात = भावनायें
विसाल/वस्ल = मिलन
फिराक/फ़ुर्कत = विरह,जुदाई
सुर्ख = लाल
रुखसार = गाल
तसव्वुर = कल्पना, ख्याल
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आँखों में समंदर, दिल में चंद जज्बात लिये
कुछ कह जाता था वो, बिना कुछ बात किये

याद आ जाता है एक चेहरा,यार-ए-विसाल की बात पर
आँखों में नमी सी, होठों पे कई मासूम से सवालात लिये

शब्-ए-फिराक में सुर्ख रुखसारों पे झिलमिलाये अश्क क्यूँ
कि पल भर की जुदाई आती है, यूँ बिन बादल बरसात लिये

पूछा किसी ने मुझसे, दिन फ़ुर्कत के गुज़रते हैं किस तरह
दिन कटता है तसव्वुर में उनके,शाम आती है ग़म साथ लिये

शमा को ग़म नहीं इसका, जल गया परवाना था जो
रौशनी-ए-वस्ल में दो दीवाने,कुछ पल तो साथ जिये

चांदनी चाँद से बिछुड़ कर रोई रात भर, सहर ने समझाया उसे
आज शाम के सुर्ख परों से,चाँद आयेगा सितारों की बारात लिये

आनंद ताम्बे "अक्स"






वो अब ख्वाब में आने लगे


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नामाबर = सन्देशवाहक/Messenger 
रुसवाई = बदनामी
अशआर = शेर की पंक्तियाँ/मतले

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आँधियों के आने से पहले ही, क्यों चिराग बुझाने लगे
उनके रूठ जाने के पहले ही,"अक्स" उन्हें मनाने लगे

अच्छा हुआ जो मैंने एक ख़त का जवाब नहीं दिया 
अगले दिन से वो खुद नामाबर की जगह आने लगे 

पहले ही, दिल मेरा, चुरा लिया एक मुस्कराहट से 
खैर हो अब वो मुझ पर भी अपना हक जताने लगे

कहाँ था नसीब में अपने, हकीक़त में उनसे मिलना 
शुक्र है परवरदिगार का, वो अब ख्वाब में आने लगे

सोचा नहीं था कि, मिलेंगी सैकड़ों रुसवाईयां बाद में 
हर मेहमान को हम,हाले-ए-दिल अपना सुनाने लगे

मिले या ना मिले दाद महफ़िल में ग़ज़ल सुनाने की
हम तो बेफिक्र होकर, अपने अशआर फरमाने लगे 

आनंद ताम्बे "अक्स" 

(c)1997






Saturday, October 8, 2011

ज़िन्दगी - एक गीत है


एक सूने से घर में, साँसों का संगीत है,
ज़िन्दगी कुछ और नहीं, दर्द भरा एक गीत है.

आती सांस जगाये नई आशा,
जाती सांस भर लाये निराशा,
कितने लोग गुज़र गये इस पल में,
ज़िन्दगी है ये कुछ पल का तमाशा.

बुलबुला है पानी का ये, जीवन की यही रीत है.
ज़िन्दगी कुछ और नहीं, दर्द भरा एक गीत है.

कभी अक्सर कुछ गम मिलते हैं,
खुशियों के फ़ूल कुछ कम खिलते हैं,
जहाँ मिल जाए कुछ दर्द कहीं,
शाम ढले वहां हम मिलते हैं.

दर्द दिल से गुज़रता है, आँसूं तो सच्चे मीत हैं.
ज़िन्दगी कुछ और नहीं, दर्द भरा एक गीत है.

संवाद - Dialogue

मंजिल से तेरा कुछ फासला है,
अभी मुश्किलों का सिलसिला है,
ढूंढ ले हमसफ़र, ज़िन्दगी का,
साथ तेरे प्यार का हौसला है.

प्यार में दिल को हार ले, यही तो असली जीत है.
ज़िन्दगी कुछ और नहीं, प्यार भरा एक गीत है.

आनंद ताम्बे "अक्स"