Friday, September 30, 2011

बात छेड़ दी जाने की

कहा उन्होंने मुझसे, कसम निभाई आने की
अभी अभी तो आये थे,बात छेड़ दी जाने की 

मासूमियत भर के आँखों में, पूछते हैं  "चुरा लूँ  दिल"
आपका ही है ये जनाब, जरुरत क्या है उसे चुराने की 

एक नज़र ही काफी थी,होश उड़ाने के लिए 
उफ़! क्या जरुरत थी लेकिन मुस्कुराने की 

चुरा के नज़रें मुझसे,सताते हैं खफा होकर
क्या सीख ली अदा,बदलते हुए ज़माने की 

एक शख्स खूबसूरत थी वो,चाहता था मैं जिसे
हाँ,  कुछ यूँ ही,  शुरुआत थी मेरे अफसाने की 

सबने है देखा,शमा का जलना,परवाने का मिट जाना
किसी ने भी ना देखी, वो अबूझी ख़ुशी उस दीवाने की 

क्यों वाइज़ "खुदा!खुदा!" कहते हुए घूमते हैं 
ये तेरी गली है, या फिर किसी मयखाने की 

आनंद ताम्बे "अक्स"

वाइज़ = मौलवी
मयखाना = शराबखाना