Wednesday, November 10, 2010

आना शाम का


एक बार

शाम आई थी, यूँ शोख, चंचल, मुस्कुराते हुए,
अपने सुर्ख रुखसारों से जुल्फें हटाते हुए,
मेरे ही चंद नग्मो को गुनगुनाते हुए.

वो शाम थी, कुछ उम्मीदों की,चंद हसरतों की,
कुछ बढ़ी हुई बेबाकी, कुछ दबी हुई चाहतों की,
एक पयाम देकर चल दी, जिन्हें आरजू थी बातों की.

कहना चाहते थे, वो होठ मगर,कुछ कह ना सके,
आये थे कुछ अश्क, पलकों तक, पर बह ना सके,
नज़रों ने तेरी कह दिया, मेरे बिन रह ना सके.

वो देख, तेरे दामन पे सितारे झिलमिलाते हैं,
अश्क भर के आँखों में, कहा तुमने "आते हैं".

आनंद ताम्बे "अक्स"

बहुत दिन हुए


गीत - बहुत दिन हुए
धुन - सुना था की वो आयेंगे अंजुमन में, सुना था की उनसे मुलाकात होगी - जगजीत सिंह/चित्रा सिंह

बहुत दिन हुए, तुमको देखा नहीं है (३ बार)

तेरी आँखों में,
जब चमकती थी शबनम,
होठों पे तुम्हारे,
मुस्कराहट थी पुरनम...(२ बार)

बहुत दिन हुए मुस्कुराया नहीं है...(२ बार)


वो थी एक लफ़्ज़ ,
मेरे दिल में जो खो के,
ग़ज़ल बन गई है,
जुदा मुझसे हो के...(२ बार)

बहुत दिन हुए तुझको गाया नहीं है...(२ बार)

संवाद - Dialogue
आ कभी यूँ ही,
गीली पवन की तरह,
भिगो दे मेरे गीत,
किसी सावन की तरह...

गीत - Continued
बहुत दिन हुए तू ही आया नहीं है...(२ बार)
बहुत दिन हुए तुझको गाया नहीं है...(२ बार)
बहुत दिन हुए मुस्कुराया नहीं है...(२ बार)
बहुत दिन हुए तुझको देखा नहीं है...(२ बार)

आनंद ताम्बे "अक्स"

तलाश



मैं,
मेरा वजूद,
मेरा "अक्स",
ज़र्रा ज़र्रा होके यूँ ही,
रेत सा बिखर गया है कहीं...

उम्मीद है कहीं से,
प्यार से,
कोई घटा,
आके बरस जाये मुझ पर,
और मैं गमक उठूँ,
एक सौंधी सी खुशबू लिये...

लेकिन...

घटा आती है,
और,
बिन बरसे,
चली जाती है,
मुझको छोड़ जाती है,
फिर...
तन्हा...
उदास...

उम्मीदें फिर भी बाकी हैं...

मेरी तिशनगी,
यूँ ही,
आसमाँ पे तलाश करती है,
नमी सी,
जैसे हो लफ्ज़ कोई,
मायने की तलाश में,

तलाश बाकी है...

आनंद ताम्बे "अक्स"

तिशनगी = प्यास

पहली पहली बारिश


पेड़ सिहर उठे,
आसमाँ का दिल धड़क उठा,
पेड़ों के साये थक कर छाँव में बैठ गये,
आफताब नज़रे झुका कर छिप गया,
पपीहा दर्द से पीहू पीहू कर उठा,
उड़ते हुए ख्वाबों की आंधी चली,
कुछ वफ़ा के पेड़ धराशाई हुये,
चंद मोहब्बतों के सूखे पत्ते उड़े,
एक गरीब का झोपड़ा उजड़ गया,
कुछ महलों के दरवाजे बंद हुये...

कुछ यादों के फूल किताब में रख कर,
मेरी कलम ने चंद फ़ुर्कत के नग्मे लिखे,
पंछियों ने हवाओं से कुछ गुफ्तगुं की,
और मेरे दर्द भरे अफसानों से, हो के रूबरू,
हवाओं का रुख पलट गया,
आसमाँ का दिल पिघल उठा,
बादल भी सुनकर रो दिये...

यूँ ही शायद, फिजा की पहली बारिश से,
"अक्स" का दर्द भरा पयाम उन तक पहुँच जाये ...

आमीन...

आनंद ताम्बे "अक्स"

आफताब = सूरज
फ़ुर्कत = विरह, जुदाई
रूबरू = Face-To-Face
पयाम = पैगाम, सन्देश, message

बरसात - एक नया रिश्ता

राह की धूप कुछ कम हुई,
मुझे छूती सी एक मीठी सबा चली,
उसकी गली से मेरी गली तक,
चंद यादों की खाक उडी...

यूँ कुछ वक्त की आंधी चली,
कुछ पत्ते जो अपने से थे,
थोड़ी देर सही, रुक गये,
बेगाने थे जो, तोड़ के सभी रिश्तों को,
अनजानी राहों पे निकल पड़े...

एक शायर ने दर्द भरे,
चंद नग्मे लिखे,
टूटी कलम,
बिखर गए जज्बात,
सियाही सी फ़ैल गई उफ़क पर,
उसके भीगे हुए से मतले,
आसमाँ पे छितर गये,
कहकहे लगाते लगाते, अचानक,
अश्क निकल ही पड़े आसमाँ से...

एक बरसात यूँ हुई अबकी,
"अक्स" मुस्कुरा उठा, कुछ सोचकर, ऐसे,
इन भीगी हुई बूंदों से, शायद,
बन गया है नया रिश्ता,
फिर जमीं और आसमाँ का,
हो चाहे वो चंद लम्हों के लिये,
मुस्कुराहटें चमकेंगी सदियों तक...

आनंद ताम्बे "अक्स"

खाक = धूल
सबा = हवा
उफ़क = क्षितिज, जहाँ आसमान और जमी मिलते हुए दिखाई देते है

अक्स - The Reflection

सूरज की पहली किरन के उतरते ही,
मैं अपनी आंखों से चंद तन्हाईयों के पर्दे उठाता हूँ ;
ख्यालों के फूलों की ज़मीन कुछ गीली सी है,
शायद कोई नया ग़म उन्हें छूकर गुजरा है अभी अभी,
अपने आंसुओं की शबनम, मैं फूलों पे जमी पता हूँ
उसी में मेरी परछाई, मेरा "अक्स" नज़र आता है ;
रोज़ आईने में अपने "अक्स" की तलाश करता हूँ,
कुछ अपने से , मगर कुछ अनजान से साये,
मेरे "अक्स" में उतरते से नज़र आते हैं,
जो शायद कहीं मेरी यादों में गुम थे,
मैं उनसे आशना हूँ, उन्हें महसूस करता हूँ,
बेखयाली में उन्हें छूने के लिए हाथ बढाता हूँ...
और धीरे से मुस्कुराता हूँ क्योंकि वो मेरे ही कई "अक्स" हैं,
जो ग़मों की शबनम से फूलों को भीगते देखते हैं,
उम्मीदों की सबा से बहते हैं, और पत्तों की आवाज़ में हसते हैं...
यही मेरी ख़ुद को ढूँढने की,
एक,
उम्मीदों से भरी कोशिश है शायद...

आनंद ताम्बे "अक्स"

शबनम = ओस की बूँदें
आशना = परिचित
सबा = हवा